पंछी

काश में एक चिड़िया होती ,
मेरे भी काश पंख होते,
 उड़ती, फिरती, घूमती ,उड़ती ,
पकड़ में किसी के ना आती,
 काश में एक चिड़िया होती।
      तिनके- तिनके से घोंसला बनाती,      कभी इस शाखा , कभी उस शाखा, 
    रुकती नहीं भटकती नहीं,
     पंख लिए बिन परवाह के  उड़ती 
      काश मैं भी एक चिड़िया होती।
 ऊंची उड़ान भरती ,
 कभी पीछे नहीं देखती,
 ऊंचे -ऊंचे पेग बढ़ाती,
 आसमान से भी ऊंचा उड़ने की
 चाह में उड़ती जाती 
काश में एक चिड़िया होती।
     ना जमाने की परवाह होती, 
ना  संसार के मोह  की परवाह होती, ना दुख ना सुख, ना दौलत की चाह होती,
  बस छोटे से  घोसले  की चाह होती     जिसमें रात सुकून से गुजारती,
 सुबह होते ही फिर खुले आसमान में    पंख लगा उड़ती फिरती,
 काश मैं भी एक चिड़िया होती।
 ना हार की चिंता, न जीत का जश्न,
 ना खोने का दुख न पाने का सुख,
 ना रिश्तो की चिंता, ना सम्मान की चिंता,
 पर फैलाए उड़ते रहना,
 यही जीवन का सार होना ,
काश मैं भी एक चिड़िया होती ,
मैं भी एक चिड़िया होती।।

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