मां
कोई याद करने की चीज नहीं हैै,
मां तो मन में बसी मूरत है ,
जैसे ईश्वर रोम रोम में बसे हैं,
वैसे ही मां भी ईश्वर का रूप है ,
मां त्याग की मूरत है,
बलिदान की देवी है ,
तेरी आंखों में ममता का सागर समाया है,
तेरा आंचल समंदर से भी गहरा है,
तेरा आशीर्वाद हिमालय से भी ऊंचा है,
तू मोहताज नहीं अपने नाम की मां,
मोहताज तो तूने बनाया है इंसान खुद को।
मां तो वह अमृत का प्याला है,
जो जिंदगी की कड़वाहट को भी अमृत बनाता है ,
मां तो फूल है जन्नत का ,
जो हर घर में खिलता है ,
मां के कदमों की मिट्टी मिल जाए तो, वह भी जन्नत की धूल है मां।
तू ही आदि है, तू ही अनंत है ,तू आई इस धरती पर ईश्वर की कृति है
तू प्रेम की मिसाल है भावनाओं का सागर है,
मां कोई याद करने की चीज नहीं है, मां तो मां है।
मां तो बस मन में बसी मूरत है,
मां कोई याद करने की चीज नहीं है
मां तो मन में बसी मूरत है।।